हुआ जो वक़्फ़-ए-ग़म वो दिल किसी का हो नहीं सकता
तुम्हारा बन नहीं सकता हमारा हो नहीं सकता
सुना पहले तो ख़्वाब-ए-वस्ल फिर इरशाद फ़रमाया
तिरे रुस्वा किए से कोई रुस्वा हो नहीं सकता
लगावट उस की नज़रों में बनावट उस की बातों में
सहारा मिट नहीं सकता भरोसा हो नहीं सकता
तमन्ना में तिरी मिट जाए दिल हाँ ये तो मुमकिन है
मिरे दिल से मिटे तेरी तमन्ना हो नहीं सकता
न फ़ुर्सत है न राहत है न 'बेख़ुद' वो तबीअत है
ग़ज़ल क्या ख़ाक लिक्खें शेर अच्छा हो नहीं सकता
ग़ज़ल
हुआ जो वक़्फ़-ए-ग़म वो दिल किसी का हो नहीं सकता
बेख़ुद देहलवी