हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
फ़िदा करता हूँ हर दम जी कूँ अपने यार-ए-जानी का
दिए में जूँ बती हो यूँ दहकती है ज़बाँ मुख में
करूँ जिस रात के अंदर बयाँ सोज़-ए-निहानी का
उंझो अँखियाँ के रोग़न हैं हमारे शोला-ए-दिल कूँ
बुझाना इश्क़ की आतिश नहीं है काम पानी का
असर करता है नाला 'आबरू' का संग के दिल में
हुनर सीखा है शायद कोहकन सूँ तेशा-रानी का
ग़ज़ल
हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का
आबरू शाह मुबारक