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हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद | शाही शायरी
hua hai samne aankhon ke KHandan aabaad

ग़ज़ल

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

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हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद
मकान में ही हुए हैं कई मकाँ आबाद

तुम्हारी याद में आबाद जिस्म-ओ-जाँ मेरे
तुम्हारे ज़िक्र से है मेरी दास्ताँ आबाद

उजड़ गई है हर इक सम्त मौसम-ए-गुल में
न बाग़बाँ है सलामत न गुलिस्ताँ आबाद

कोई पयाम न कोई अता पता उन का
कोई बताए कहाँ पर हैं रफ़्तगाँ आबाद

अजीब जुज़्व है ये मेरे जिस्म का कि यहाँ
कहीं यक़ीन है क़ाएम कहीं गुमाँ आबाद

यही दुआ है मिरी और यही तमन्ना है
सदा रहे मेरी वादी यहाँ वहाँ आबाद

कोई भी फ़ैसला होगा नहीं रहे जब तक
तुम्हारी तेग़ सलामत मिरी सिनाँ आबाद