हुआ है अहल-ए-साहिल पर असर क्या
तुझे ऐ डूबने वाले ख़बर क्या
वही है चश्म-ए-नर्गिस का तहय्युर
नहीं गुलशन में कोई दीदा-वर क्या
सफ़ीना क्यूँ तह-ए-गिर्दाब आया
तलातुम-ख़ेज़ मौजों को ख़बर क्या
निगाह-ए-लुत्फ़ का मम्नून है दिल
मगर ये पुर्सिश-ए-बार-ए-दिगर क्या
न जाना जिस ने राज़-ए-मर्ग-ओ-हस्ती
वो क्या समझे कि है तेरी नज़र क्या
बहुत दुश्वार थी राह-ए-मोहब्बत
हमारा साथ देते हम-सफ़र क्या
सितारों की भी उम्रें हो गईं ख़त्म
न होगा क़िस्सा-ए-ग़म मुख़्तसर क्या
सहर अपनी न अपनी शाम ऐ 'नक़्श'
किसी मजबूर के शाम-ओ-सहर क्या
ग़ज़ल
हुआ है अहल-ए-साहिल पर असर क्या
महेश चंद्र नक़्श