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होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में | शाही शायरी
hoti hai haar jit pinhan baat baat mein

ग़ज़ल

होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में

मुनीर शिकोहाबादी

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होती है हार जीत पिन्हाँ बात बात में
चौपड़ बिछी है अंजुमन-ए-काएनात में

रख फ़िक्र-ए-जिस्म आरयती काएनात में
चोरी न जाएँ माँग के कपड़े बरात में

प्यासे मिरी लहू के हैं सब काएनात में
कश्ती-ए-उम्र चलती है आब-ए-फ़ुरात में

बे-अक़्ल हो के आ गए हस्ती की घात में
दीवाने बन के फँस गए क़ैद-ए-हयात में

साक़ी से कह दो सब्ज़ा-ए-तर में बहा शराब
टाँके कदू की बेल क़बा-ए-नबात में

की तल्ख़ गुफ़्तुगू लब-ए-जाँ-बख़्श से मुदाम
अफ़यून घोली आप ने आब-ए-हयात में

क़ाएम मिज़ाजियों में भी ग़फ़लत मुहीत है
है ख़्वाब-ए-मर्ग मख़मल-ए-रंग-ए-सबात में

होंटों का इश्क़ था ये रहे आबरू की बात
मुर्दे को ग़ुस्ल दीजिए आब-ए-हयात में

पहुँचा जो तेरे कूचे में ख़ुद-रफ़्ता हो गया
जाता रहा मैं आप से राह-ए-नजात में

मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ
अंगिया की डोरियाँ हैं मुक़र्रर क़नात में

हस्ती में तर्क कीजिए ज़ुल्फ़ों के इश्क़ को
ज़ंजीरें दोहरी तोड़िए क़ैद-ए-हयात में

मूसा-ओ-ख़िज़्र ने तिरे बटने के वास्ते
घोला है बर्क़-ए-तूर को आब-ए-हयात में

ग़ारत किया अख़ीर जवानी में दहर को
दुनिया तमाम लूट ली थोड़ी सी रात में

जुज़ दाग़-ए-ज़िंदगी में नहीं और कुछ सुरूर
अफ़यून कब है लाला-ए-रंग-ए-सबात में

मुद्दत से ढेर जादा-ए-बाक-ए-नजफ़ में है
तकिया है इस फ़क़ीर का राह-ए-नजात में

शादी हुई जो रात को खेले वो गंजिफ़ा
रौशन किया ग़ुलाम ने इक्का बरात में

कूचे में रख के आशिक़-ए-मुज़्तर की हड्डियाँ
मछली के काँटे बो दिए राह-ए-नजात में

दिल की सफ़ा हो जामा-ए-हस्ती में जल्वा-गर
जेब-ए-सहर उगाऊँ क़बा-ए-हयात में

सावन के बदले गाइए 'हाफ़िज़' के शेर-ए-तर
झूला ज़रूर डालिए शाख़-ए-नबात में

हस्ती की क़ैद से दिल-ए-बेताब छुप गया
मछली न ठहरी बाज़ू-ए-शम-ए-हयात में

मुर्दे जिलाए सैकड़ों ठुकरा कर ऐ सनम
दस्त-ए-मसीह का है असर तेरी लात में

शीरीं-अदाइयाँ भी हों रफ़्तार-ए-नाज़ भी
काफ़ूर-ए-सुब्ह-ए-हश्र हो क़ंद-ओ-नबात में

होंटों की मस्ती दूर की तू ने खटाई से
लेमूँ की चाशनी है तिरी मीठी बात में

अंधा बनाएँगे वो रुला कर इताब से
रहते हैं रोज़ आँख चुराने की घात में

मौत आए मुझ को हिज्र में अहमद की ऐ 'मुनीर'
वल्लाह कुछ मज़ा नहीं ऐसी हयात में