होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते
औरों के तो क्या होंगे वो अपने नहीं होते
मिल उन से कभी जागते हैं जिन के मुक़द्दर
तेरी तरह हर वक़्त वो सोए नहीं होते
दिन में जो फिरा करते हैं हुशियार ओ ख़बर-दार
वो मेरी तरह रात को जागे नहीं होते
हम उन की तरफ़ से कभी होते नहीं ग़ाफ़िल
रिश्ते वही पक्के हैं जो पक्के नहीं होते
अग़्यार ने मुद्दत से जो रोके हुए थे काम
अब हम भी ये देखेंगे वो कैसे नहीं होते
नाकामी की सूरत में मिले ताना-ए-ना-याफ़्त
अब काम मिरे इतने भी कच्चे नहीं होते
शब अहल-ए-हवस ऐसे परेशान थे 'बासिर'
जैसे मह-ओ-अंजुम कभी देखे नहीं होते
ग़ज़ल
होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते
बासिर सुल्तान काज़मी