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होता है दिन-रात यहाँ अब झगड़ा भाई भाई में | शाही शायरी
hota hai din-raat yahan ab jhagDa bhai bhai mein

ग़ज़ल

होता है दिन-रात यहाँ अब झगड़ा भाई भाई में

अहसन इमाम अहसन

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होता है दिन-रात यहाँ अब झगड़ा भाई भाई में
रोज़ ही उठती हैं दीवारें हर घर की अँगनाई में

शाइ'र वो जो फ़िक्र की गहराई से गौहर ले आए
इस कोशिश में जाने कितने लोग गिरे इस खाई में

फ़ुटपाथों पर रहने वाले थर-थर काँपते रहते हैं
दौलत वाले सोते हैं जब कम्बल और रज़ाई में

अब तो ख़ुद ही कमाओ 'अहसन' जीना है जब दुनिया में
ढोता है कब बोझ किसी का कोई इस महँगाई में