EN اردو
होश उस का है बे-ख़ुदी उस की | शाही शायरी
hosh us ka hai be-KHudi uski

ग़ज़ल

होश उस का है बे-ख़ुदी उस की

जावेद जमील

;

होश उस का है बे-ख़ुदी उस की
ज़िंदगी की हर इक घड़ी उस की

दूर तक मलगजा सा सन्नाटा
और आहट कभी कभी उस की

इश्क़ मेरा है सूफ़ियों जैसा
सिर्फ़ मतलूब है ख़ुशी उस की

दिल को होंटों से दूर रखता है
मार डालेगी ख़ामुशी उस की

तीरगी छा रही है हर जानिब
बेवफ़ाई है शाम सी उस की

देख कर ख़ुश-गुमाँ हुआ है दिल
गर्म-जोशी कमाल की उस की

हम-सफ़र जिस का ख़ूब-सीरत हो
ख़ूबसूरत है ज़िंदगी उस की

ख़्वाब में दिल-नवाज़ियाँ 'जावेद'
और हक़ीक़त है बे-रुख़ी उस की