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होश का अंदाज़ा बे-होशी में है | शाही शायरी
hosh ka andaza be-hoshi mein hai

ग़ज़ल

होश का अंदाज़ा बे-होशी में है

सय्यद अाग़ा अली महर

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होश का अंदाज़ा बे-होशी में है
याद का आलम फ़रामोशी में है

मय-कदा मस्जिद सुबू ज़र्फ़-ए-वज़ू
ज़ोहद का सामान मय-नोशी में है

जुस्तुजू क़ातिल की ला-हासिल नहीं
तन मिरा फ़िक्र-ए-सुबुकदोशी में है

है वो माह ऐ 'मेहर' महफ़िल में कि बद्र
किस को इतना होश मय-नोशी में है