होंगे वो जल्वा-गर कभी न कभी
आएँगे बाम पर कभी न कभी
ये यक़ीं है की मेरी उल्फ़त का
होगा उन पर असर कभी न कभी
खींच लाएगा मेरा जज़्बा-ए-दिल
तुझ को ऐ बे-ख़बर कभी न कभी
लाख हम से छुपा तो फिर क्या है
ढूँड लेगा नज़र कभी न कभी
शेर-गोई को आप की 'ताबाँ'
होगा हासिल समर कभी न कभी
ग़ज़ल
होंगे वो जल्वा-गर कभी न कभी
अनवर ताबाँ