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होंगे वो जल्वा-गर कभी न कभी | शाही शायरी
honge wo jalwa-gar kabhi na kabhi

ग़ज़ल

होंगे वो जल्वा-गर कभी न कभी

अनवर ताबाँ

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होंगे वो जल्वा-गर कभी न कभी
आएँगे बाम पर कभी न कभी

ये यक़ीं है की मेरी उल्फ़त का
होगा उन पर असर कभी न कभी

खींच लाएगा मेरा जज़्बा-ए-दिल
तुझ को ऐ बे-ख़बर कभी न कभी

लाख हम से छुपा तो फिर क्या है
ढूँड लेगा नज़र कभी न कभी

शेर-गोई को आप की 'ताबाँ'
होगा हासिल समर कभी न कभी