होने वाला था इक हादसा रह गया
कल का सब से बड़ा वाक़िआ रह गया
रात आँगन में उतरी नहीं चाँदनी
चाँद शाख़ों में उलझा हुआ रह गया
हम ने कह सुन लिया मुतमइन हो गए
और अब कहने सुनने को क्या रह गया
सुब्ह होगी कहानी बनेगी कोई
ज़िंदगी का यही मसअला रह गया
मैं ने नफ़रत की खाई पे पुल रख दिया
फिर भी टूटा हुआ सिलसिला रह गया
सब ड्रामे के किरदार घर चल दिए
सामने एक पर्दा पड़ा रह गया
ये भी तकलीफ़-देह इक सज़ा ही तो है
शाख़ में एक पत्ता हरा रह गया
मैं किसी के यहाँ वक़्त क्या काटता
अपना ही घर 'शफ़क़' ढूँढता रह गया
ग़ज़ल
होने वाला था इक हादसा रह गया
फ़ारूक़ शफ़क़