होना है ग़म को ख़ाक-बसर जागते रहो
मिलती है ज़िंदगी की ख़बर जागते रहो
गर्दिश विदा-ए-हिज्र है और मुज़्दा-ए-विसाल
गर्दिश में हैं ये शाम-ओ-सहर जागते रहो
देखोगे सेहन-ए-बाग़ में आब-ए-रवाँ का जोश
लाएँगे नख़्ल बर्ग-ओ-समर जागते रहो
सीने को चाक चाक करो दिल को लख़्त लख़्त
आएँगे घर में शम्स-ओ-क़मर जागते रहो
शीशा उठाओ जाम में ढालो ग़ज़ल कहो
होता है क़ाफ़िलों का गुज़र जागते रहो
देखोगे चश्म-ए-नर्गिस-ए-जादू ब-काम-ए-दिल
देखोगे ज़ुल्फ़ ता-ब-कमर जागते रहो
रक़्स-ए-बुताँ भी होगा यहीं रक़्स-ए-जाम भी
आँखों में भर के जोश-ए-नज़र जागते रहो
वक़्त-ए-सहर है वक़्त-ए-मुनाजात-ओ-सैर-ए-गुल
सोने में है ज़िया-ए-सहर जागते रहो

ग़ज़ल
होना है ग़म को ख़ाक-बसर जागते रहो
ख़ुर्शीदुल इस्लाम