होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं
हम ब-उनवान-ए-दिगर सोचते हैं
अपना ज़ाहिर में कोई जुर्म न था
क्यूँ हुए शहर-बदर सोचते हैं
शाख़-दर-शाख़ हैं गुम-सुम ताइर
सर को नेहुड़ाए शजर सोचते हैं
कोई बतलाए ये क्या वादी है
दम-ब-ख़ुद कोह हजर सोचते हैं
जाने क्यूँ मुझ से बिछड़ कर 'मुंज़िर'
वो भी मानिंद-ए-बशर सोचते हैं
ग़ज़ल
होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं
बशीर मुंज़िर