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हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की | शाही शायरी
ho tark kisi se na mulaqat kisi ki

ग़ज़ल

हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की

हफ़ीज़ जौनपुरी

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हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की
यारब न बिगड़ जाए बनी बात किसी की

पाँव को जो फैला के सर-ए-शाम से सोए
क्या जाने वो किस तरह कई रात किसी की

फ़रमाइए क्यूँ कर वो सहे आप की गाली
उठ सकती न हो जिस से कड़ी बात किसी की

फ़रमाइशें तुम रोज़ करो शौक़ से लेकिन
ये जान लो थोड़ी सी है औक़ात किसी की

मुमकिन है कि समझे न 'हफ़ीज़' आप की चालें
शायर से भी चलती है कहीं घात किसी की