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हो सके तो दिल-ए-सद-चाक दिखाया जाए | शाही शायरी
ho sake to dil-e-sad-chaak dikhaya jae

ग़ज़ल

हो सके तो दिल-ए-सद-चाक दिखाया जाए

अमीन राहत चुग़ताई

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हो सके तो दिल-ए-सद-चाक दिखाया जाए
अब भरी बज़्म में अहवाल सुनाया जाए

हाए उस जान-ए-तमन्ना से निभेगी कैसे
हम से तो राज़ न इक रोज़ छुपाया जाए

अपना ग़म हो तो उसे कह के सुकूँ मिल जाए
उस का ग़म हो तो किसे जा के सुनाया जाए

रात भर जिन की ज़िया से रहे रौशन कमरे
सुब्ह-दम उन ही चराग़ों को बुझाया जाए

ध्यान में जिस के कई जागती रातें गुज़रीं
'राहत' इक रात उसे भी तो जगाया जाए