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हो रहा है क्या जहाँ में इक नज़र मत देखिए | शाही शायरी
ho raha hai kya jahan mein ek nazar mat dekhiye

ग़ज़ल

हो रहा है क्या जहाँ में इक नज़र मत देखिए

महेश जानिब

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हो रहा है क्या जहाँ में इक नज़र मत देखिए
पहले पन्ने पर है जो बस वो ख़बर मत देखिए

दुनिया को तब्दील करने के हैं इस में ख़्वाब बस
इंक़िलाबी हूँ मिरा रख़्त-ए-सफ़र मत देखिए

प्यार से बिगड़े भी हैं कुछ लोग ये माना मगर
हो दवा लाज़िम तो इस के बद-असर मत देखिए

क्या उजड़ता जा रहा है इस पे भी रक्खें नज़र
सिर्फ़ बस्ते ईंट पत्थर के नगर मत देखिए

देखना है ये कि बिल्कुल ठीक हो अपनी दिशा
कितनी भी चाहे हो पुर-ख़म रहगुज़र मत देखिए

शर्म से मर जाओगे इंसान हैं गर आप इक
किस तरह करते हैं ये मुफ़लिस गुज़र मत देखिए

चाहे रुक जाओ कहीं भी तान दो तम्बू कहीं
पीछे मुड़ मुड़ कर कभी 'जानिब' मगर मत देखिए