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हो न हो आस-पास है कोई | शाही शायरी
ho na ho aas-pas hai koi

ग़ज़ल

हो न हो आस-पास है कोई

चन्द्रभान ख़याल

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हो न हो आस-पास है कोई
मेरे जितना उदास है कोई

सोचता हूँ तो और बढ़ती है
ज़िंदगी है कि प्यास है कोई

हादिसा एक भी नहीं गुज़रा
बे-सबब बद-हवास है कोई

फिर परिंदे शजर से बिछड़े हैं
फिर से तस्वीर-ए-यास है कोई

अपनी उर्दू तो लोक भाषा है
इस से क्यूँ ना-शनास है कोई