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हो के बस इंसान हैराँ सर पकड़ कर बैठ जाए | शाही शायरी
ho ke bas insan hairan sar pakaD kar baiTh jae

ग़ज़ल

हो के बस इंसान हैराँ सर पकड़ कर बैठ जाए

निज़ाम रामपुरी

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हो के बस इंसान हैराँ सर पकड़ कर बैठ जाए
क्या बन आए उस घड़ी जब वो बिगड़ कर बैठ जाए

तू वो आफ़त है कोई तुझ से उठा सकता है दिल
देख ले कोई जो तुझ को दिल पकड़ कर बैठ जाए

वस्ल में भी उस से कह सकता नहीं कुछ ख़ौफ़ से
दूर खिच कर पास से मेरे न मड़ कर बैठ जाए

दोस्तो मेरी नहीं तक़्सीर दिल देने में कुछ
दिल वो ले कर ही उठे जब पास अड़ कर बैठ जाए

इस ख़ुशामद से मिरा कुछ मुद्दआ ही और है
चाहते हो तुम ये मेरे पाँव पड़ कर बैठ जाए

उस का बल खा कर वो उठना पास से मेरे ग़ज़ब
और इक आफ़त है जो वो खिच कर अकड़ कर बैठ जाए

मुफ़्त ले लेते हैं दिल आशिक़ से अपने वो 'निज़ाम'
लाख फिर माँगे कोई थक कर झगड़ कर बैठ जाए