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हो ईद या मोहर्रम हम ग़म किया करेंगे | शाही शायरी
ho id ya moharram hum gham kiya karenge

ग़ज़ल

हो ईद या मोहर्रम हम ग़म किया करेंगे

किशन कुमार वक़ार

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हो ईद या मोहर्रम हम ग़म किया करेंगे
दो रोज़ा दहर-ए-दूँ में मातम किया करेंगे

मज़मून दरहमी का गेसू के बाँधेंगे हम
हर दम मिज़ाज अपना बरहम किया करेंगे

उस हर्फ़-ए-ना-शुनू की फ़ुर्क़त में चुपके बैठे
हम अपने दिल से बातें हर दम किया करेंगे

कानों तक उस के पहुँचे मानिंद-ए-ज़ुल्फ़ जब हम
सरगोशियाँ सरासर बाहम किया करेंगे

वो ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ से अपने काफ़ूर-ओ-मुश्क ले कर
तय्यार ज़ख़्म-ए-दिल का मरहम किया करेंगे

गो तल्ख़ वो कहेंगे लब-हा-ए-शक्करीं से
हर दम दुआ मगर हम हम-दम किया करेंगे

गो ख़ूँ का क़तरा क़तरा दिल से 'वक़ार' कम हो
लेकिन सुख़न सुख़न से हम ज़म किया करेंगे