हो गई शाम ढल गया सूरज
दिन को शब में बदल गया सूरज
गर्दिश-ए-वक़्त कट गई आख़िर
लो गहन से निकल गया सूरज
दिन भी जैसे उदास रहता है
हाए कितना बदल गया सूरज
हम ने जिस कूचे में गुज़ारी शब
इस जगह सर के बिल गया सूरज
अब बहुत हो चुके उठो 'नादिर'
चढ़ गया दिन निकल गया सूरज
ग़ज़ल
हो गई शाम ढल गया सूरज
अतहर नादिर