हो गई सारी पशेमानी अबस
अपनी हस्ती हम ने पहचानी अबस
अब निकलता ही नहीं सूरत से अक्स
दिल की ये आईना-सामानी अबस
आँख पत्थर की तरह साकित हो जब
क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ की ये जौलानी अबस
ज़िंदगी है रेग-ज़ार-ए-बे-कराँ
दीदा-ए-बेताब तुग़्यानी अबस
मिलने पर हैरान होना था 'सबा'
छूट कर उन से ये हैरानी अबस
ग़ज़ल
हो गई सारी पशेमानी अबस
सबा जायसी