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हो गए अम्बर-फ़शाँ दोनों-जहाँ मेरे लिए | शाही शायरी
ho gae ambar-fashan donon-jahan mere liye

ग़ज़ल

हो गए अम्बर-फ़शाँ दोनों-जहाँ मेरे लिए

ज़ाहीदा कमाल

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हो गए अम्बर-फ़शाँ दोनों-जहाँ मेरे लिए
मुस्कुराया गुलशन-ए-कौन-ओ-मकाँ मेरे लिए

क्या हुआ मैं ने जो गाए नग़्मा-ए-दार-ओ-रसन
तुम ने ख़ुद छेड़ था साज़-ए-इम्तिहाँ मेरे लिए

आँख भर आई गुलों के चाक दामाँ देख कर
नश्तर-ए-ग़म है चमन की दास्ताँ मेरे लिए

ये समझ कर अपनी बर्बादी पर हँसती हूँ मुदाम
तेरी दुनिया में नहीं शायद अमाँ मेरे लिए

हम-कनार-ए-जल्वा-ए-यज़्दाँ है मेरा दिल 'कमाल'
कैफ़-ज़ा हैं रात की तन्हाइयाँ मेरे लिए