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हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था | शाही शायरी
hisar-e-zat mein sara jahan hona tha

ग़ज़ल

हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था

शबाना यूसुफ़

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हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था
क़रीब ऐसे तुझे मेरी जान होना था

तिरी जबीं पे शिकन क्यूँ विसाल-लम्हे में
मोहब्बतों का यहाँ तो निशान होना था

तुम्हारे छूने से कुछ रौशनी बदन को मिली
वगरना उस को फ़क़त राख-दान होना था

तुम्हारी नफ़रतों ने मिट्टी में मिला डाला
जो ख़्वाब तारा सा पलकों की शान होना था

बहुत ही थोड़ी थी दिल में तुम्हारे उम्र मिरी
थी ख़्वाब-ज़ाद मुझे दास्तान होना था

बिछड़ गया तो 'शबाना' मलाल क्या करना
उसे बिछड़ना था वहम ओ गुमान होना था