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हिर्स-ए-माल-ओ-मनाल में खोया | शाही शायरी
hirs-e-mal-o-manal mein khoya

ग़ज़ल

हिर्स-ए-माल-ओ-मनाल में खोया

परतव रोहिला

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हिर्स-ए-माल-ओ-मनाल में खोया
हम ने फ़र्दा भी हाल में खोया

एक लम्हा था तुझ को पाने का
वो भी फ़िक्र-ए-मआल में खोया

मैं ने पिंदार-ए-आशिक़ी सारा
इक अधूरे सवाल में खोया

वो सितारा जो राह दिखलाता
ख़ुद ग़ुरूर-ए-कमाल में खोया

कारवाँ महव है अंधेरों में
रहनुमा क़ील-ओ-क़ाल में खोया

साअ'तें सर-निगूँ गुज़रती हैं
वक़्त इस के ख़याल में खोया

मैं भी कर्ब-ए-तलब में गुम 'पर्तव'
वो भी सेहर-ए-जमाल में खोया