हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी
ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी
इक तिरी दीद छिन गई मुझ से
वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी
अपनी मश्क़-ए-सितम से हाथ न खींच
मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी
तेरी चश्म-ए-अलम-नवाज़ की ख़ैर
दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी
हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल
ज़िंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी
ग़ज़ल
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़