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हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी | शाही शायरी
himmat-e-iltija nahin baqi

ग़ज़ल

हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी
ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी

इक तिरी दीद छिन गई मुझ से
वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

अपनी मश्क़-ए-सितम से हाथ न खींच
मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी

तेरी चश्म-ए-अलम-नवाज़ की ख़ैर
दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी

हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल
ज़िंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी