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हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का मौसम निकल गया | शाही शायरी
hijr-o-visal-e-yar ka mausam nikal gaya

ग़ज़ल

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का मौसम निकल गया

शहाब जाफ़री

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हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का मौसम निकल गया
ऐ दर्द-ए-इश्क़ जाग ज़माना बदल गया

कब तक ये रोज़-ए-हश्र सुन ऐ शाम-ए-इंतिज़ार
क्या रात अब न आएगी सूरज तो ढल गया

अब के कहाँ से आए हो सावन के बादलो
देखो तो सारा बाग़ ही बरखा से जल गया

जाऊँ कहाँ कि ताब नहीं अर्ज़-ए-नग़्मा की
पानी में आग लग गई पत्थर पिघल गया

सातों सुरों के राग से जलती है दिल की आग
बाद-ए-फ़ना मैं भी मिरा शो'ला सँभल गया

उस की सदा से राग निकाले 'शहाब' ने
इक शब लगी वो आग कि नादान जल गया