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हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो | शाही शायरी
hijr mein guzri hai us raat ki baaten na karo

ग़ज़ल

हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो

अब्दुल मतीन नियाज़

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हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो
आप तज्दीद-ए-मुलाक़ात की बातें न करो

दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है
दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें न करो

हिम्मतें क़ाफ़िले वालों की न हों पस्त कहीं
रहरव-ए-गर्दिश-ए-हालात की बातें न करो

चाहिए जोश-ए-तलब मेरे शिकस्ता-दिल को
ऐसे हालात में सदमात की बातें न करो

ज़िंदगी और भी तशरीह-तलब है यारो
ग़म के तपते हुए लम्हात की बातें न करो

कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़'
आप अब मुझ से इनायात की बातें न करो