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हिज्र मौजूद है फ़साने में | शाही शायरी
hijr maujud hai fasane mein

ग़ज़ल

हिज्र मौजूद है फ़साने में

फ़ैसल अजमी

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हिज्र मौजूद है फ़साने में
साँप होता है हर ख़ज़ाने में

रात बिखरी हुई थी बिस्तर पर
कट गई सिलवटें उठाने में

रिज़्क़ ने घर संभाल रक्खा है
इश्क़ रक्खा है सर्द ख़ाने में

रात भी हो गई है दिन जैसी
घर जलाने के शाख़साने में

रोज़ आसेब आते जाते हैं
ऐसा क्या है ग़रीब-ख़ाने में

हो रही है मुलाज़मत 'फ़ैसल'
राएगानी के कार-ख़ाने में