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हिज्र की रात छोड़ जाती है | शाही शायरी
hijr ki raat chhoD jati hai

ग़ज़ल

हिज्र की रात छोड़ जाती है

फ़रहत अब्बास शाह

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हिज्र की रात छोड़ जाती है
नित-नई बात छोड़ जाती है

इश्क़ चलता है ता-अबद लेकिन
ज़िंदगी साथ छोड़ जाती है

दिल बयाबानी साथ रखता है
आँख बरसात छोड़ जाती है

चाह की इक ख़ुसूसियत है कि ये
मुस्तक़िल मात छोड़ जाती है

मरहले इस तरह के भी हैं कि जब
ज़ात को ज़ात छोड़ जाती है

हिज्र का कोई ना कोई पहलू
हर मुलाक़ात छोड़ जाती है