हिज्र का मौसम झेली हो
ऐसी एक सहेली हो
तेरे क़ुर्ब की ख़ुश्बू हो
चम्पा हो न चमेली हो
ऐसा कौन सा दरिया है
जिस ने प्यास न झेली हो
हर इक राह पे साथ चले
ऐसा अल्हड़ बेली हो
उस की हर इक बात है यूँ
जैसे कोई पहेली हो

ग़ज़ल
हिज्र का मौसम झेली हो
नोमान फ़ारूक़