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हिज्र का मौसम झेली हो | शाही शायरी
hijr ka mausam jheli ho

ग़ज़ल

हिज्र का मौसम झेली हो

नोमान फ़ारूक़

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हिज्र का मौसम झेली हो
ऐसी एक सहेली हो

तेरे क़ुर्ब की ख़ुश्बू हो
चम्पा हो न चमेली हो

ऐसा कौन सा दरिया है
जिस ने प्यास न झेली हो

हर इक राह पे साथ चले
ऐसा अल्हड़ बेली हो

उस की हर इक बात है यूँ
जैसे कोई पहेली हो