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हिज्र ग़म का बयान है गोया | शाही शायरी
hijr gham ka bayan hai goya

ग़ज़ल

हिज्र ग़म का बयान है गोया

श्याम सुंदर लाल बर्क़

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हिज्र ग़म का बयान है गोया
यास की दास्तान है गोया

उस के जौर-ओ-सितम का क्या कहना
ज़ुल्म में आसमान है गोया

पाँव फैलाए ख़ूब सोते हैं
कुंज-ए-मरक़द मकान है गोया

रुख़ से ज़ाहिर है हाल-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
क़ल्ब का तर्जुमान है गोया

ख़ाल-ए-आरिज़ पे यूँ नुमायाँ है
दाग़ दिल का निशान है गोया

हिज्र में आह उस गुल-ए-तर के
रंग-ए-रुख़ ज़ाफ़रान है गोया

दर्द-ए-दिल क्यूँ कहें न हम उन से
जब हमारी ज़बान है गोया

अर्श से आमद-ए-मज़ामीं है
ये ज़मीन आसमान है गोया

'बर्क़' तुम ने ग़ज़ल ये ख़ूब कही
लखनऊ की ज़बान है गोया