हज़ारों तरह अपना दर्द हम उस को सुनाते हैं
मगर तस्वीर को हर हाल में तस्वीर पाते हैं
बुझा दे ऐ हवा-ए-तुंद मदफ़न के चराग़ों को
सियह-बख़्ती में ये इक बद-नुमा धब्बा लगाते हैं
मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं
उसी महफ़िल से मैं रोता हुआ आया हूँ ऐ 'आसी'
इशारे में जहाँ लाखों मुक़द्दर बदले जाते हैं
ग़ज़ल
हज़ारों तरह अपना दर्द हम उस को सुनाते हैं
आसी उल्दनी