हज़ार टूटे हुए ज़ावियों में बैठी हूँ
ख़याल ओ ख़्वाब की परछाइयों में बैठी हूँ
तुम्हारी आस की चादर से मुँह छुपाए हुए
पुकारती हुई रुस्वाइयों में बैठी हूँ
हर एक सम्त सदाएँ हैं चुप चटख़ने की
ख़ला में चीख़ती तन्हाइयों में बैठी हूँ
निगाह ओ दिल में उगी धूप को बुझाती हुई
तुम्हारे हिज्र की रानाइयों में बैठी हूँ
जुनून-ए-वस्ल तमाशे दिखा गया इतने
मैं आप अपने तमाशाइयों में बैठी हूँ
ग़ज़ल
हज़ार टूटे हुए ज़ावियों में बैठी हूँ
सरवत ज़ेहरा