EN اردو
हज़ार शुक्र कि अंदेशा-ए-मआल गया | शाही शायरी
hazar shukr ki andesha-e-maal gaya

ग़ज़ल

हज़ार शुक्र कि अंदेशा-ए-मआल गया

मुनव्वर लखनवी

;

हज़ार शुक्र कि अंदेशा-ए-मआल गया
कोई किसी से जो कहने को दिल का हाल गया

कहाँ कहाँ नहीं दोनों को दस्तरस हासिल
वहीं निगाह भी पहुँची जहाँ ख़याल गया

जवाब में न खुलें लब तो क्या इलाज उस का
हँसी हँसी में कोई मेरी बात टाल गया

अजब थीं फ़लसफ़ी-ए-ना-मुराद की बातें
यक़ीं के साथ मिरे दिल में शक भी डाल गया

क़दम क़दम पे हुए होश गुम 'मुनव्वर' के
तलाश-ए-दोस्त का सौदा गया ख़याल गया