हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए
नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
तअल्लुक़ात की दुनिया भी आदमी के लिए
इक अजनबी सा तसव्वुर है अजनबी के लिए
चमन चमन है मोहब्बत जहाँ जहाँ से जमाल
ये एहतिमाम है इक दिल की ज़िंदगी के लिए
शब-ए-नशात मुबारक तुझे ये माह-ओ-नुजूम
सहर बहुत है मिरी कम-सितारगी के लिए
निगाह-ए-दोस्त सलामत कि फ़ैज़-ए-गिर्या से
बहुत गुहर हैं मिरे दामन-ए-तही के लिए
निगाह-ए-मस्त की सहबा टपक रही है 'नुशूर'
ग़ज़ल कही है तबीअत की सरख़ुशी के लिए
ग़ज़ल
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए
नुशूर वाहिदी