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हज़ार रंज हो दिल लाख दर्द-मंद रहे | शाही शायरी
hazar ranj ho dil lakh dard-mand rahe

ग़ज़ल

हज़ार रंज हो दिल लाख दर्द-मंद रहे

मख़मूर देहलवी

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हज़ार रंज हो दिल लाख दर्द-मंद रहे
ख़याल पस्त न हो हौसला बुलंद रहे

ग़म-ए-फ़िराक़ में दिल क्यूँ न दर्द-मंद रहे
बहार आ के गई हम क़फ़स में बंद रहे

ख़ुदा की याद में दुनिया को भूल जा ऐ दिल
वो काम कर कि हर इक तर्फ़ सूद-मंद रहे

मिले कि कुछ न मिले माँगने से काम रखूँ
तिरी जनाब में दस्त-ए-दुआ बुलंद रहे

दिखाईं गर्दिश-ए-दौराँ ने सूरतें क्या क्या
मगर मुझे तो अकेले तुम्हीं पसंद रहे

ग़ुरूर-ए-हुस्न उन्हें इन्किसार-ए-शेवा-ए-इश्क़
वो बे-नियाज़ रहे हम नियाज़-मंद रहे

जनाब-ए-शैख़ भी 'मख़मूर' शब को रिंदों में
अजीब हाल से मसरूफ़-ए-वा'ज़-ओ-पंद रहे