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हज़ार कोशिश-ए-पैहम के बावजूद हमें | शाही शायरी
hazar koshish-e-paiham ke bawajud hamein

ग़ज़ल

हज़ार कोशिश-ए-पैहम के बावजूद हमें

नबील अहमद नबील

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हज़ार कोशिश-ए-पैहम के बावजूद हमें
तमाम उम्र कोई दोस्त बा-वफ़ा न मिला

कहाँ का वस्ल मुलाक़ात ही ग़नीमत है
फिर उस के बा'द वो हम से मिला मिला न मिला

वो जिस को हम ने ज़माने से बढ़ के चाहा था
उस एक शख़्स की चाहत में कुछ मज़ा न मिला

तिरी जुदाई के सहरा में खो गए ऐसे
सुराग़ अपना कहीं और कहीं पता न मिला

ये काएनात कि बे-रंग होती जाती है
जो दिल का रंग दिखाती वो आइना न मिला

तलाशते रहे काँटों में फूल से पैकर
मिज़ाज हम को अज़ल से ही आशिक़ाना मिला

तमाम उम्र ही रस्तों की ख़ाक छानी है
हमें तो मंज़िल-ए-हस्ती तिरा पता न मिला

हमें जो राह दिखाता क़दम क़दम पे 'नबील'
मिसाल-ए-ख़िज़्र कोई ऐसा रहनुमा न मिला

ख़ुद आप अपने मुक़ाबिल में आ गए हैं 'नबील'
हमें मिज़ाज मिला भी तो बाग़ियाना मिला