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हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है | शाही शायरी
hayat hai ki musalsal safar ka aalam hai

ग़ज़ल

हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है

नरेश कुमार शाद

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हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है
हर एक साँस में वहशी ग़ज़ाल का रम है

जहाँ अज़ल से घटा-टोप ज़ुल्मतें हैं मुहीत
वहाँ भी आज फ़रोज़ाँ निगाह-ए-आदम है

उन्हीं के ख़ून से दमकेगा कल रुख़-ए-गीती
हयात जिन के लिए आज साग़र-ए-सम है

उसी की आँच से पिघलेगा ज़िंदगी का जुमूद
जो सोज़ आज ब-ज़ाहिर दिलों में कम कम है

जहान-ए-सोज़ है मेरे ख़ुनुक तरानों में
मैं वो शरार हूँ जिस पर रिदा-ए-शबनम है

न जाने जाग उठे 'शाद' कब नसीब-ए-जहाँ
बहुत दिनों से मिज़ाज-ए-हयात बरहम है