हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ
ये वक़्त-ए-इम्तिहाँ है और मैं हूँ
मिरी तन्हाई का आलम न पूछो
ख़याल-ए-दोस्ताँ है और मैं हूँ
लबों पर मोहर-ए-ख़ामोशी है लेकिन
निगाहों की ज़बाँ है और मैं हूँ
मिरी तक़दीर मुझ से बद-गुमाँ है
नसीब-ए-दुश्मनाँ है और मैं हूँ
जिगर में सोज़ है और दिल में मेरे
मिरा दर्द-ए-निहाँ है और मैं हूँ
गरेबाँ चाक लट उलझी हुई हैं
बड़ा दिलकश समाँ है और मैं हूँ
फ़लक वाले मुझे पहचानते हैं
ये मेरी कहकशाँ है और मैं हूँ
ग़ज़ल
हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ
अंजुम सिद्दीक़ी