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हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ | शाही शायरी
hayat-e-raegan hai aur main hun

ग़ज़ल

हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ

अंजुम सिद्दीक़ी

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हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ
ये वक़्त-ए-इम्तिहाँ है और मैं हूँ

मिरी तन्हाई का आलम न पूछो
ख़याल-ए-दोस्ताँ है और मैं हूँ

लबों पर मोहर-ए-ख़ामोशी है लेकिन
निगाहों की ज़बाँ है और मैं हूँ

मिरी तक़दीर मुझ से बद-गुमाँ है
नसीब-ए-दुश्मनाँ है और मैं हूँ

जिगर में सोज़ है और दिल में मेरे
मिरा दर्द-ए-निहाँ है और मैं हूँ

गरेबाँ चाक लट उलझी हुई हैं
बड़ा दिलकश समाँ है और मैं हूँ

फ़लक वाले मुझे पहचानते हैं
ये मेरी कहकशाँ है और मैं हूँ