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हया-ए-रूह गुल-एज़ाज़ भी है | शाही शायरी
haya-e-ruh gul-eazaz bhi hai

ग़ज़ल

हया-ए-रूह गुल-एज़ाज़ भी है

जौहर ज़ाहिरी

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हया-ए-रूह गुल-एज़ाज़ भी है
शुऊर-ए-ज़िंदगी का राज़ भी है

मोहब्बत राज़-अंदर-राज़ भी है
कहीं ये सोज़ भी है साज़ भी है

उसे कैसे न दिल दे दूँ कि जिस में
वफ़ा भी हुस्न भी अंदाज़ भी है

रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा में ज़िंदगानी
तराना भी है सोज़-ओ-साज़ भी है

मोहब्बत में न देख अंजाम ऐ दिल
ये इक बे-इंतिहा आग़ाज़ भी है

तबस्सुम ही नहीं ग़ारत-गर-ए-दिल
बला-ए-जाँ ख़िराम-ए-नाज़ भी है

दिल-ए-'जौहर' है इक आशिक़ की दुनिया
कि ये पामाल-ए-हुस्न-ओ-नाज़ भी है