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हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही | शाही शायरी
hawas ki aag bujhi dil ki tishnagi hai wahi

ग़ज़ल

हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही

नज़ीर सिद्दीक़ी

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हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही
सुकून-ए-जाँ से तही मेरी ज़िंदगी है वही

दिल-ए-फ़सुर्दा में एहसास ही नहीं बाक़ी
जहान-ए-कोहना में वर्ना शगुफ़्तगी है वही

जमाल और जुनूँ हो चुके ज़माना-शनास
नियाज़-ओ-नाज़ में कहने को सादगी है वही

कोई क़ुसूर तो साबित न हो सका लेकिन
जो बद-गुमाँ थे उन्हें मुझ से बरहमी है वही

वो हर क़दम के असर से है बा-ख़बर फिर भी
रह-ए-हयात में इंसाँ की कज-रवी है वही