EN اردو
हवस के बीज बदन जब से दिल में बोने लगा | शाही शायरी
hawas ke bij badan jab se dil mein bone laga

ग़ज़ल

हवस के बीज बदन जब से दिल में बोने लगा

शोएब निज़ाम

;

हवस के बीज बदन जब से दिल में बोने लगा
मैं ख़ुद से मिलने के सारे जवाज़ खोने लगा

रफ़ीक़-ए-सुब्ह था सूरज से रिश्ता-दारी थी
सिपाह-ए-शब में ये किस का शुमार होने लगा

अजीब मंज़र-ए-आख़िर था बुझती आँखों में
वो मुझ को मार के बे-इख़्तियार रोने लगा

इस एहतियात की सरहद सज़ा से मिलती है
लहू का नाम लिया आस्तीन धोने लगा

फिर इस के बाद ये सारी ज़मीन मेरी थी
जगा के जब से मुझे ये ज़मीर सोने लगा