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हवादिस पर न ऐ नादाँ नज़र कर | शाही शायरी
hawadis par na ai nadan nazar kar

ग़ज़ल

हवादिस पर न ऐ नादाँ नज़र कर

जोश मलसियानी

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हवादिस पर न ऐ नादाँ नज़र कर
क़ज़ा से जंग बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कर

मुआफ़ी भी सज़ा से कम नहीं है
बस अब इस दरगुज़र से दरगुज़र कर

जहाँ डूबी थी कश्ती आरज़ू की
उसी गिर्दाब में निकली उभर कर

कभी तो माइल-ए-तर्क-ए-सितम हो
कभी मुझ पर करम की भी नज़र कर

गुज़ारा तो यहाँ मुश्किल है ऐ दिल
मगर अब जिस तरह भी हो गुज़र कर

वो मुझ ख़ूनीं-कफ़न से पूछते हैं
कहाँ जाने लगे हो बन-सँवर कर

वही हस्ती का चक्कर है यहाँ भी
भँवर ही में रहे हम पार उतर कर

मिरी मुख़्तारियों के साथ या-रब
मिरी मजबूरियों पर भी नज़र कर

नए आलम इधर भी हैं उधर भी
यही देखा दो-आलम से गुज़र कर

बयान-ए-दर्द-ए-दिल ऐ 'जोश' कब तक
ख़ुदा-रा अब ये क़िस्सा मुख़्तसर कर