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हवा पे चल रहा है चाँद राह-वार की तरह | शाही शायरी
hawa pe chal raha hai chand rah-war ki tarah

ग़ज़ल

हवा पे चल रहा है चाँद राह-वार की तरह

शाहिदा हसन

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हवा पे चल रहा है चाँद राह-वार की तरह
क़दम उठा रही है रात इक सवार की तरह

फ़सील-ए-वादी-ए-ख़याल से उतर रही है शब
किसी ख़मोश और उदास आबशार की तरह

तड़प रहा है बारिशों में मेरे जिस्म का शजर
सियाह अब्र में घिरे हुए चिनार की तरह

इन्ही उदासियों की काएनात में कभी तो मैं
ख़िज़ाँ को जीत लूँगी मौसम-ए-बहार की तरह

तिरे ख़याल के सफ़र में तेरे साथ मैं भी हूँ
कहीं कहीं किसी ग़ुबार-ए-रह-गुज़ार की तरह

उबूर कर सकी न फ़ासलों की गर्दिशों को मैं
बुलंद हो गई ज़मीन कोहसार की तरह

तिरे दिए की रौशनी को ढूँडता है शाम से
मिरा मकाँ किसी लुटे हुए दयार की तरह