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हवा के साथ सफ़र इख़्तियार करना था | शाही शायरी
hawa ke sath safar iKHtiyar karna tha

ग़ज़ल

हवा के साथ सफ़र इख़्तियार करना था

मुनीर सैफ़ी

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हवा के साथ सफ़र इख़्तियार करना था
दयार-ए-शब को ख़मोशी से पार करना था

हमारी ख़ाक कोई चाँदनी में डाल आए
हमारा काम सितारे शिकार करना था

हुई थी इस लिए ताख़ीर तुम से मिलने में
ख़ुद अपना भी तो मुझे इंतिज़ार करना था

तुम्हारे वास्ते करना था मैं ने ख़ुद को तलाश
तुम्हारे वास्ते मैं ने फ़रार करना था

अभी से तुम ने मुझे बे-कनार कर डाला
अभी तो तुम ने मुझे हम-कनार करना था

हमारी सम्त भी इक सिक्का मुस्कुराहट का
हमें भी अपनी रेआया शुमार करना था

फ़लक तो भूल भी सकता था लग़्ज़िशें 'सैफ़ी'
मगर ज़मीं ने बहुत शर्मसार करना था