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हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है | शाही शायरी
hawa ka zor hi kafi bahana hota hai

ग़ज़ल

हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है

शहरयार

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हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
अगर चराग़ किसी को जलाना होता है

ज़बानी दा'वे बहुत लोग करते रहते हैं
जुनूँ के काम को कर के दिखाना होता है

हमारे शहर में ये कौन अजनबी आया
कि रोज़ ख़्वाब सफ़र पे रवाना होता है

कि तू भी याद नहीं आता ये तो होना था
गए दिनों को सभी को भुलाना होता है

इसी उमीद पे हम आज तक भटकते हैं
हर एक शख़्स का कोई ठिकाना होता है

हमें इक और भरी बज़्म याद आती है
किसी की बज़्म में जब मुस्कुराना होता है