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हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया | शाही शायरी
hawa ka jhonka bhi nazren jama ke baiTh gaya

ग़ज़ल

हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया

नियाज़ जयराजपुरी

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हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया
मैं रेत पर तिरा चेहरा बना के बैठ गया

सरापा-नाज़ वो महफ़िल में आ के बैठ गया
न जाने कितनों के तोते उड़ा के बैठ गया

था इंतिज़ार मुझे जिस के लौट आने का
किसी को और वो अपना बना के बैठ गया

भटक रही थी हवा कासा-ए-तलब ले कर
सो रास्ते में दिया मैं जला के बैठ गया

वो एक बुलबुला जो सत्ह-ए-आब पर उभरा
बिसात मेरी वो मुझ को बता के बैठ गया

कुरेदने से न बाज़ आया राख माज़ी की
वो आख़िर उँगलियाँ अपनी जला के बैठ गया

मलाल-ओ-रश्क है 'जीराजपूरी' को उस का
'नियाज़' से भी कोई दिल लगा के बैठ गया