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हवा हवस के इलाक़े दिखा रही है मुझे | शाही शायरी
hawa hawas ke ilaqe dikha rahi hai mujhe

ग़ज़ल

हवा हवस के इलाक़े दिखा रही है मुझे

असअ'द बदायुनी

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हवा हवस के इलाक़े दिखा रही है मुझे
गुल-ए-गुनह की महक फिर बुला रही है मुझे

अभी न जाऊँगा मैं दूसरे सितारे पर
कि ये ज़मीन अभी रास आ रही है मुझे

चराग़ भी मिरा चेहरा है शब भी मेरा जिस्म
तो फिर ये ख़ल्क़-ए-ख़ुदा क्यूँ जला रही है मुझे

समझ में कुछ नहीं आता कि ये हवा-ए-वजूद
जला रही है मुझे या बुझा रही है मुझे

गियाह-ए-इश्क़ भी मेरी गुल-ए-हवस भी मिरे
तो क्यूँ ज़मीन तमाशा बना रही है मुझे