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हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे | शाही शायरी
hawa-e-subh-e-numu dushman-e-chaman kaise

ग़ज़ल

हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे

याक़ूब राही

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हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे
शिकार-ए-रश्क-ओ-रक़ाबत गुल-ओ-समन कैसे

हिसार-ए-शाम-ओ-सहर और ज़ब्त-ए-अहल-ए-नफ़स
निज़ाम-ए-जब्र में बेबस ये मर्द-ओ-ज़न कैसे

न कोई बात हुई और न कोई दिल ही दुखा
बुझे बुझे से ये शुराका-ए-अंजुमन कैसे

न कोई हाथ उठा और न कोई ज़ेर हुआ
तो फिर बताओ कि ये चाक पैरहन कैसे

खुले तो किस पे खुले रंग-ए-ए'तिबार-ए-सुख़न
ये साहिबान-ए-नज़र बद-गुमान-ए-फ़न कैसे