हवा चलेगी मगर सितारा नहीं चलेगा
समुंदरों में तिरा इशारा नहीं चलेगा
यही रहेंगे ये दर ये गलियाँ यही रहेंगी
तुम्ही चलोगे कोई नज़ारा नहीं चलेगा
शब-ए-सफ़र है हथेलियों पर भँवर उगेंगे
तुम्हारे हम-राह अब किनारा नहीं चलेगा
सुनो कि अब हम गुलाब देंगे गुलाब लेंगे
मोहब्बतों में कोई ख़सारा नहीं चलेगा
बहार मक़रूज़ है घरों और मक़बरों की
गुलों पे रस्तों का ही इजारा नहीं चलेगा

ग़ज़ल
हवा चलेगी मगर सितारा नहीं चलेगा
जावेद अनवर